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वीर बालिका नीरजा - भाग २

पहला भाग :  वीर बालिका नीरजा - भाग १ नीरजा: " जी दादाजी। मेरी योग्यता पर  किंचित संदेह किंचित=Slightest, संदेह=Doubt  न कीजिये। आप केवल मुझे यह बताइए की जाना कहाँ है?" वृक्ष: " ठीक है!   तो ध्यान से सुनो!  यहां से   कुछ पंद्रह सौ  कोस दूर उत्तर दिशा  में, हिमालय के  पार, पामिर पर्वतों से घिरा हुआ का राकुल सरोवर है।  उस सरोवर Lake का जल उसमें विचरण करने वाले जलजीवों  के कारण गहरा  काला हो गया  है। किसी तरह तुम्हें उस सरोवर के तल से  एक काला मोती प्राप्त करना होगा।  उस मोती को पीस कर, उसके चूरे  को तुम्हारे नाना द्वारा बनाई गयी  औषधि में मिला कर छोटी राजकुमारी को पिलाने से ही वह ठीक हो पाएगी। " अपने परदादा से काराकुल तक पहुँचने  की सारी  जानकारी प्राप्त कर और  उनका आशीर्वाद  लेकर वह  अकेले ही उस काले मोती की खोज में निकल पड़ी। दो दिनों तक अपने घोड़े पर सवार कई छोटी-बड़ी नदियों और पर्वतों को पार कर राजकुमारी ने  एक घने जंगल में प्रवेश किया।...

वीर बालिका नीरजा - भाग १

प्राचीन काल में, सुख और समृद्धि से परिपूर्ण, नलगंदल नाम का एक राज्य था। वहां के राजा, महाराज ऋत्विक एक कुशल प्रशासक थे, और उनके राज्यकाल में प्रजा अत्यंत सुखी थी। अपनी पत्नी महारानी स्वर्णलता, व दो पुत्रियों नीरजा एवं रागेश्वरी के साथ वे आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक वर्ष नलगंदल में एक अज्ञात संक्रमण अज्ञात=Unknown, संक्रमण=Infection का प्रकोप हुआ, और छोटी राजकुमारी रागेश्वरी, जो उस समय केवल दो वर्ष की थी, उस संक्रमण के कारण अचेतन अवस्था अचेतन=Unconscious, अवस्था=State में चली गयी। उस समय महाराज ऋत्विक, राज्यहित में व्यापार को विस्तृत Expand करने हेतु, दक्षिण अफ्रीका के राजा ओडुम्बे से मिलने वहां गए हुए थे। पंद्रह दिवस बीत गए, परन्तु राजवैद्य धन्वन्तरी राजकुमारी को उस अवस्था से नहीं निकाल पाए। अतः महारानी स्वर्णलता ने अपने पिता, फौन्देश के राजा सुयश को बुला भेजा। सेनापति विराग सन्देश लेकर फौन्देश पहुंचे और महाराज सुयश को अपने साथ ले आए। महाराज स्वयं एक प्रतिष्ठित Reputed वैद्य थे। राजकुमारी की अव...